वो बेवफ़ा भी हो तो क्या ये ऐसी भी ख़ता नहीं
By swati-sani-reshamFebruary 29, 2024
वो बेवफ़ा भी हो तो क्या ये ऐसी भी ख़ता नहीं
ये ज़िंदगी भी चार दिन में देगी क्या दग़ा नहीं
ज़बान पर सवाल थे प लब मिरे सिले रहे
वो मुंतज़िर खड़ा रहा प मैं ने कुछ कहा नहीं
वो राह अपनी चल पड़ा न मुड़ के देखा उस ने फिर
मैं बुत बनी खड़ी रही और वो कभी रुका नहीं
दो लफ़्ज़ भी कहे बिना वो उठ के क्यों चला गया
तलाशती रही उसे प वो कहीं मिला नहीं
बे-कार ही मैं सोचती थी दिल का साथ है सदा
जो दिल किसी पे आ गया तो उस का आसरा नहीं
हवा बहुत चली मगर चराग़ की भी ज़िद रही
जो राख को शरर किया तो दिल कभी बुझा नहीं
मैं सब्र उस का लूट लूँ क़रार उस का छीन लूँ
ये मेरी सादगी ही है कि मैं ने यूँ किया नहीं
थी डोर इक जुड़ी हुई यूँ मेरे उस के दरमियाँ
कि रास्ते जुदा थे फिर भी प्यार कम हुआ नहीं
निगाह में इक आस थी लबों पे मेरे आह थी
कि याद तो किया उसे मगर कभी कहा नहीं
ये ज़िंदगी भी चार दिन में देगी क्या दग़ा नहीं
ज़बान पर सवाल थे प लब मिरे सिले रहे
वो मुंतज़िर खड़ा रहा प मैं ने कुछ कहा नहीं
वो राह अपनी चल पड़ा न मुड़ के देखा उस ने फिर
मैं बुत बनी खड़ी रही और वो कभी रुका नहीं
दो लफ़्ज़ भी कहे बिना वो उठ के क्यों चला गया
तलाशती रही उसे प वो कहीं मिला नहीं
बे-कार ही मैं सोचती थी दिल का साथ है सदा
जो दिल किसी पे आ गया तो उस का आसरा नहीं
हवा बहुत चली मगर चराग़ की भी ज़िद रही
जो राख को शरर किया तो दिल कभी बुझा नहीं
मैं सब्र उस का लूट लूँ क़रार उस का छीन लूँ
ये मेरी सादगी ही है कि मैं ने यूँ किया नहीं
थी डोर इक जुड़ी हुई यूँ मेरे उस के दरमियाँ
कि रास्ते जुदा थे फिर भी प्यार कम हुआ नहीं
निगाह में इक आस थी लबों पे मेरे आह थी
कि याद तो किया उसे मगर कभी कहा नहीं
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