वो दिलकशी वो रौशनी-ए-बाम-ओ-दर गई तुम क्या गए कि रौनक़-ए-शाम-ओ-सहर गई चश्म-ए-करम की ख़ैर अजब काम कर गई बे-रंगी-ए-हयात में सौ रंग भर गई मैं इंतिज़ार ही में रहा और ज़िंदगी चुप-चाप मेरे पास से हो कर गुज़र गई अश्कों की बूँद यार की तस्वीर देख कर औराक़-ए-गुल पे सूरत-ए-शबनम बिखर गई अह्द-ए-वफ़ा-ए-दोस्त हो या इंतिज़ार-ए-दोस्त हर बात ए'तिबार की हद से गुज़र गई आई जो तेरी याद तो मानिंद-ए-बू-ए-गुल सारी फ़ज़ा-ए-शौक़ को मख़मूर कर गई इतना तो मेरी आह का रद्द-ए-अमल हुआ उन की जबीं पे एक शिकन सी उभर गई मिलते ही आज उन की जुनूँ-आफ़रीं निगाह मुझ को हर एक चीज़ से बेगाना कर गई 'जौहर' न पूछ उम्र-ए-गुरेज़ाँ की सरगुज़श्त जिस तरह भी गुज़र गई आख़िर गुज़र गई