वो दिलकशी वो रौशनी-ए-बाम-ओ-दर गई
By chandra-parkash-jauhar-bijnauriMay 6, 2022
वो दिलकशी वो रौशनी-ए-बाम-ओ-दर गई
तुम क्या गए कि रौनक़-ए-शाम-ओ-सहर गई
चश्म-ए-करम की ख़ैर अजब काम कर गई
बे-रंगी-ए-हयात में सौ रंग भर गई
मैं इंतिज़ार ही में रहा और ज़िंदगी
चुप-चाप मेरे पास से हो कर गुज़र गई
अश्कों की बूँद यार की तस्वीर देख कर
औराक़-ए-गुल पे सूरत-ए-शबनम बिखर गई
अह्द-ए-वफ़ा-ए-दोस्त हो या इंतिज़ार-ए-दोस्त
हर बात ए'तिबार की हद से गुज़र गई
आई जो तेरी याद तो मानिंद-ए-बू-ए-गुल
सारी फ़ज़ा-ए-शौक़ को मख़मूर कर गई
इतना तो मेरी आह का रद्द-ए-अमल हुआ
उन की जबीं पे एक शिकन सी उभर गई
मिलते ही आज उन की जुनूँ-आफ़रीं निगाह
मुझ को हर एक चीज़ से बेगाना कर गई
'जौहर' न पूछ उम्र-ए-गुरेज़ाँ की सरगुज़श्त
जिस तरह भी गुज़र गई आख़िर गुज़र गई
तुम क्या गए कि रौनक़-ए-शाम-ओ-सहर गई
चश्म-ए-करम की ख़ैर अजब काम कर गई
बे-रंगी-ए-हयात में सौ रंग भर गई
मैं इंतिज़ार ही में रहा और ज़िंदगी
चुप-चाप मेरे पास से हो कर गुज़र गई
अश्कों की बूँद यार की तस्वीर देख कर
औराक़-ए-गुल पे सूरत-ए-शबनम बिखर गई
अह्द-ए-वफ़ा-ए-दोस्त हो या इंतिज़ार-ए-दोस्त
हर बात ए'तिबार की हद से गुज़र गई
आई जो तेरी याद तो मानिंद-ए-बू-ए-गुल
सारी फ़ज़ा-ए-शौक़ को मख़मूर कर गई
इतना तो मेरी आह का रद्द-ए-अमल हुआ
उन की जबीं पे एक शिकन सी उभर गई
मिलते ही आज उन की जुनूँ-आफ़रीं निगाह
मुझ को हर एक चीज़ से बेगाना कर गई
'जौहर' न पूछ उम्र-ए-गुरेज़ाँ की सरगुज़श्त
जिस तरह भी गुज़र गई आख़िर गुज़र गई
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