वो दिन भी आए कि हम ये 'अजीब खाना खाएँ
By farhat-ehsasFebruary 6, 2024
वो दिन भी आए कि हम ये 'अजीब खाना खाएँ
अमीर खाना पकाएँ ग़रीब खाना खाएँ
वो शब कहाँ कि खुले उस बदन का दस्तरख़्वान
और उस के साथ में हम ख़ुश-नसीब खाना खाएँ
हम अहल-ए-'इश्क़ दुकान-ए-हवस पे जाएँ न क्यों
जब उस की दा'वत-ए-दिल में रक़ीब खाना खाएँ
तमाम शह्र है फ़ाक़े से और ग़ज़ब देखो
अमीर-ए-शहर और उस के हबीब खाना खाएँ
कोई तो आए जो नक़्क़ाद का वलीमा कराए
कि एक दिन तो ये शा'इर अदीब खाना खाएँ
यही है 'इश्क़ कि जब गुल करें शिकम-सेरी
तो उस के दूसरे दिन 'अंदलीब खाना खाएँ
अमीर खाना पकाएँ ग़रीब खाना खाएँ
वो शब कहाँ कि खुले उस बदन का दस्तरख़्वान
और उस के साथ में हम ख़ुश-नसीब खाना खाएँ
हम अहल-ए-'इश्क़ दुकान-ए-हवस पे जाएँ न क्यों
जब उस की दा'वत-ए-दिल में रक़ीब खाना खाएँ
तमाम शह्र है फ़ाक़े से और ग़ज़ब देखो
अमीर-ए-शहर और उस के हबीब खाना खाएँ
कोई तो आए जो नक़्क़ाद का वलीमा कराए
कि एक दिन तो ये शा'इर अदीब खाना खाएँ
यही है 'इश्क़ कि जब गुल करें शिकम-सेरी
तो उस के दूसरे दिन 'अंदलीब खाना खाएँ
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