वो इक निगाह जो बे-इख़्तियार करती है

By adeeb-malegaviMay 21, 2024
वो इक निगाह जो बे-इख़्तियार करती है
दिलों को दर्द का उम्मीदवार करती है
वही सुलूक मिरे दिल से तुम भी क्यों न करो
चमन के साथ जो फ़स्ल-ए-बहार करती है


निगाह-ए-शौक़ को दूँ कौन-सी सज़ा या-रब
ये दिल का राज़-ए-निहाँ आश्कार करती है
समझ सका न कोई फ़ितरत-ए-मोहब्बत को
ये उस को फूँकती है जिस को प्यार करती है


मुझे तो चैन नहीं है कशाकश-ए-ग़म से
वो शय है क्या जो तुम्हें बे-क़रार करती है
न आए तुम तो शिकायत मुझे नहीं लेकिन
ये चाँदनी जो मुझे शर्मसार करती है


ग़ुरूर-ए-इश्क़ बहुत हो चुका 'अदीब' बहुत
वो बज़्म अब भी तिरा इंतिज़ार करती है
49958 viewsghazalHindi