वो यूँही नहीं 'इश्क़ की जागीर से निकला
By jamal-ehsaniFebruary 26, 2024
वो यूँही नहीं 'इश्क़ की जागीर से निकला
मजबूरी-ए-नान-ओ-नमक-ओ-शीर से निकला
पाया है किसी दायरा-ए-ख़ाक में ख़ुद को
मैं जब भी किसी हल्क़ा-ए-ज़ंजीर से निकला
ये सामने जो ढेर ख़ज़ाने का पड़ा है
नक़्शे से नहीं लग़्ज़िश-ए-रहगीर से निकला
क्या होता अगर मैं नज़र-अंदाज़ न करता
जो दूसरा मतलब तिरी तहरीर से निकला
दोहरी हुई जाती थी कमर बोझ से मेरी
जब ख़्वाब लिए कूचा-ए-ता'बीर से निकला
मजबूरी-ए-नान-ओ-नमक-ओ-शीर से निकला
पाया है किसी दायरा-ए-ख़ाक में ख़ुद को
मैं जब भी किसी हल्क़ा-ए-ज़ंजीर से निकला
ये सामने जो ढेर ख़ज़ाने का पड़ा है
नक़्शे से नहीं लग़्ज़िश-ए-रहगीर से निकला
क्या होता अगर मैं नज़र-अंदाज़ न करता
जो दूसरा मतलब तिरी तहरीर से निकला
दोहरी हुई जाती थी कमर बोझ से मेरी
जब ख़्वाब लिए कूचा-ए-ता'बीर से निकला
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