या-रब मिरे माज़ी का ख़सारा मुझे मिल जाए
By qamar-malalFebruary 28, 2024
या-रब मिरे माज़ी का ख़सारा मुझे मिल जाए
खोई थी मोहब्बत जो दुबारा मुझे मिल जाए
जो 'इश्क़ के क़ैदी हैं रिहाई उन्हें दूँगा
दुनिया पे किसी दिन जो इजारा मुझे मिल जाए
सब छोड़ने को आज भी तय्यार खड़ा हूँ
उस सम्त से बस एक इशारा मुझे मिल जाए
उस आँख का मय-ख़ाने में जब ज़िक्र छिड़ा तो
हर रिंद ने महफ़िल में पुकारा मुझे मिल जाए
सर्दी है दिसम्बर भी है मौसम भी हसीं है
ऐसे में अगर साथ तुम्हारा मुझे मिल जाए
दुनिया को मैं पा कर ये दु'आ माँग रहा हूँ
वो शख़्स जो दुनिया पे था वारा मुझे मिल जाए
क्या आँख है क्या गाल हैं क्या ज़ुल्फ़ है क्या लब
ऐ काश कि वो सारे का सारा मुझे मिल जाए
खोई थी मोहब्बत जो दुबारा मुझे मिल जाए
जो 'इश्क़ के क़ैदी हैं रिहाई उन्हें दूँगा
दुनिया पे किसी दिन जो इजारा मुझे मिल जाए
सब छोड़ने को आज भी तय्यार खड़ा हूँ
उस सम्त से बस एक इशारा मुझे मिल जाए
उस आँख का मय-ख़ाने में जब ज़िक्र छिड़ा तो
हर रिंद ने महफ़िल में पुकारा मुझे मिल जाए
सर्दी है दिसम्बर भी है मौसम भी हसीं है
ऐसे में अगर साथ तुम्हारा मुझे मिल जाए
दुनिया को मैं पा कर ये दु'आ माँग रहा हूँ
वो शख़्स जो दुनिया पे था वारा मुझे मिल जाए
क्या आँख है क्या गाल हैं क्या ज़ुल्फ़ है क्या लब
ऐ काश कि वो सारे का सारा मुझे मिल जाए
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