याद आई है तिरी सख़्त मक़ाम आया है

By akhtar-orenviJune 1, 2024
याद आई है तिरी सख़्त मक़ाम आया है
दिल के सहरा में ये वक़्त-ए-सर-ए-शाम आया है
इक नए रंग में आज उन का पयाम आया है
आरज़ुओं के लिए नाम-ब-नाम आया है


जाँ-ब-लब शौक़ के सज्दे भी तड़प उठ्ठे हैं
उन के अंदाज़-ए-तग़ाफ़ुल को सलाम आया है
मेरे ग़म-ख़ाना के अंदोह ख़मोशी का हरीफ़
कैसी बेगाना मिज़ाजी का कलाम आया है


हिल रही है मिरे ज़िंदान-ए-जुनूँ की दीवार
फिर तसव्वुर में तिरा जल्वा-ए-बाम आया है
अंजुमन-साज़ है ये राज़-ए-मोहब्बत ऐ दोस्त
ज़िक्र जब आया तिरा बर-सर-ए-आम आया है


दिल-ए-बेताब की हसरत ने बिखेरे सज्दे
मज्लिस-ए-ग़ैर में भी तेरा जो नाम आया है
चश्म-ए-साक़ी में झलकती है मिरी लग़्ज़िश-ए-शौक़
काँपते हाथ से लब तक अभी जाम आया है


'अक़्ल को जोश-ए-जुनूँ दार-ओ-रसन तक लाया
'अक़्ल वालों के कभी होश भी काम आया है
तेरी सरकार में 'अख़्तर' की दु'आएँ गिर्यां
दिल का कश्कोल लिए तेरा ग़ुलाम आया है


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