याद आता है मुझे रेत का घर बारिश में में अकेली थी सर-ए-राहगुज़र बारिश में वो अजब शख़्स था हर हाल में ख़ुश रहता था उस ने ता-उम्र किया हँस के सफ़र बारिश में तुम ने पूछा भी तो किस मोड़ पे आ कर पूछा कैसे उजड़ा था चहकता हुआ घर बारिश में इक दिया जलता है कितनी भी चले तेज़ हवा टूट जाते हैं कई एक शजर बारिश में आँखें बोझल हैं तबीअ'त भी है कुछ अफ़्सुर्दा कैसी अलसाई सी लगती है सहर बारिश में