याद आई वो ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ कट जाएगी अब शब-ए-हिज्राँ मेरे बा'द ऐ जल्वा-ए-जानाँ कौन करेगा दावत-ए-मिज़्गाँ तेरा गिला क्या गेसू-ए-जानाँ मैं भी परेशाँ तू भी परेशाँ किस ने देखा ज़ख़्म गुलों का करते रहे सब सैर-ए-गुलिस्ताँ देख क़फ़स में आग लगी है अब्र-ए-बहाराँ अब्र-ए-बहाराँ अपनी जफ़ा पर अपनी वफ़ा पर वो भी पशेमाँ हम भी पशेमाँ एक जिगर के दाग़ से रौशन तेरा शबिस्ताँ मेरा शबिस्ताँ मर कर जीना तू ने सिखाया ऐ ग़म-ए-जानाँ ऐ ग़म-ए-जानाँ