याद आई वो ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ
By vafa-malikpuriMay 21, 2021
याद आई वो ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ
कट जाएगी अब शब-ए-हिज्राँ
मेरे बा'द ऐ जल्वा-ए-जानाँ
कौन करेगा दावत-ए-मिज़्गाँ
तेरा गिला क्या गेसू-ए-जानाँ
मैं भी परेशाँ तू भी परेशाँ
किस ने देखा ज़ख़्म गुलों का
करते रहे सब सैर-ए-गुलिस्ताँ
देख क़फ़स में आग लगी है
अब्र-ए-बहाराँ अब्र-ए-बहाराँ
अपनी जफ़ा पर अपनी वफ़ा पर
वो भी पशेमाँ हम भी पशेमाँ
एक जिगर के दाग़ से रौशन
तेरा शबिस्ताँ मेरा शबिस्ताँ
मर कर जीना तू ने सिखाया
ऐ ग़म-ए-जानाँ ऐ ग़म-ए-जानाँ
कट जाएगी अब शब-ए-हिज्राँ
मेरे बा'द ऐ जल्वा-ए-जानाँ
कौन करेगा दावत-ए-मिज़्गाँ
तेरा गिला क्या गेसू-ए-जानाँ
मैं भी परेशाँ तू भी परेशाँ
किस ने देखा ज़ख़्म गुलों का
करते रहे सब सैर-ए-गुलिस्ताँ
देख क़फ़स में आग लगी है
अब्र-ए-बहाराँ अब्र-ए-बहाराँ
अपनी जफ़ा पर अपनी वफ़ा पर
वो भी पशेमाँ हम भी पशेमाँ
एक जिगर के दाग़ से रौशन
तेरा शबिस्ताँ मेरा शबिस्ताँ
मर कर जीना तू ने सिखाया
ऐ ग़म-ए-जानाँ ऐ ग़म-ए-जानाँ
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