यार तुम दिल दुखा रही हो क्या बोल दो दूर जा रही हो क्या यूँ ख़मोशी मुझे दिखा कर तुम ज़ुल्म पर ज़ुल्म ढह रही हो क्या मेरी ग़ुर्बत को जान कर जानाँ जान मुझ से छुड़ा रही हो क्या दिल में ख़्वाहिश है दोस्ती की मगर दुश्मनी तुम निभा रही हो क्या रिज़्क़ अल्लाह दे रहा है हमें बात उस की भुला रही हो क्या क्या है 'परवेज़' की ख़ता ये बता बे-सबब आज़मा रही हो क्या