ये बात अब के उसे बताना नहीं पड़ेगी
By zaeem-rasheedNovember 27, 2020
ये बात अब के उसे बताना नहीं पड़ेगी
ग़ज़ल को हरगिज़ ग़ज़ल सुनाना नहीं पड़ेगी
जो वो मिला तो मैं ख़र्च कर दूँगा एक पल में
बदन की ख़ुश्बू मुझे बचाना नहीं पड़ेगी
तुझे ब्याहूँ तो दो क़बीले क़रीब होंगे
किसी को बंदूक़ भी उठाना नहीं पड़ेगी
मैं अपने लहजे का हाथ थामे निकल पड़ा हूँ
किसी को आवाज़ भी लगाना नहीं पड़ेगी
मैं अपनी हर इक सियाह-बख़्ती को जानता हूँ
'ज़ईम' तोते को फ़ाल उठाना नहीं पड़ेगी
ग़ज़ल को हरगिज़ ग़ज़ल सुनाना नहीं पड़ेगी
जो वो मिला तो मैं ख़र्च कर दूँगा एक पल में
बदन की ख़ुश्बू मुझे बचाना नहीं पड़ेगी
तुझे ब्याहूँ तो दो क़बीले क़रीब होंगे
किसी को बंदूक़ भी उठाना नहीं पड़ेगी
मैं अपने लहजे का हाथ थामे निकल पड़ा हूँ
किसी को आवाज़ भी लगाना नहीं पड़ेगी
मैं अपनी हर इक सियाह-बख़्ती को जानता हूँ
'ज़ईम' तोते को फ़ाल उठाना नहीं पड़ेगी
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