ये दिल भी तो डूबेगा समुंदर में किसी के हम भी तो लिखे होंगे मुक़द्दर में किसी के उस दिल के बहुत पास न इस दिल से बहुत दूर बैठे हुए हम होंगे बराबर में किसी के अब उस के बिना यूँ हैं शब-ओ-रोज़ हमारे जैसे कोई दरवाज़ा न हो घर में किसी के शायद कि किसी मिस्रा-ए-ख़ुश-रंग की सूरत हम भी नज़र आ जाएँगे मंज़र में किसी के