ये क़लम मेरा जब से उठ्ठा है
By umood-abrar-ahmadMarch 1, 2024
ये क़लम मेरा जब से उठ्ठा है
तुम को नज़रों का नूर लिक्खा है
और फिर बोलती नहीं हूँ मैं
मेरा इक-तरफ़ा 'इश्क़ सच्चा है
इक नज़र रोज़ वो दिखे हम को
मेरे दिल के लिए ये अच्छा है
कोई ऐसी महक लगी हरसू
'इश्क़ का ज़ौक़ जब से चक्खा है
हो के चुप-चाप सी मोहब्बत में
ख़ुद को ऐसे सँभाल रख्खा है
तुम को नज़रों का नूर लिक्खा है
और फिर बोलती नहीं हूँ मैं
मेरा इक-तरफ़ा 'इश्क़ सच्चा है
इक नज़र रोज़ वो दिखे हम को
मेरे दिल के लिए ये अच्छा है
कोई ऐसी महक लगी हरसू
'इश्क़ का ज़ौक़ जब से चक्खा है
हो के चुप-चाप सी मोहब्बत में
ख़ुद को ऐसे सँभाल रख्खा है
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