ये कश्ती-ए-हयात ये तूफ़ान-ए-हादसात मुझ को तो कुछ ख़बर न रही आर-पार की है गर्दिश-ए-ज़माना में दो-रंगी-ए-हयात उम्मीद की सहर है तो शब इंतिज़ार की ये दैर ये हरम ये कलीसा ये सोमनात तारीफ़ क्या हो क़ुदरत पर्वरदिगार की है कौन जो उठा सके बार-ए-ग़म-ए-हयात हम ने भी गर क़बा-ए-ख़िरद तार तार की अल्लाह रे तसादुम-ए-हालात-ओ-हादसात की इख़्तियार संग ने सूरत शरार की ज़र्रों की आब-ओ-ताब से तारों ने खाई मात ये ख़ूबियाँ हैं ख़ाक तिरे इंकिसार की ऐ 'अश्क' ज़िंदगी में न पूछी किसी ने बात अब ख़ाक चूमते हैं हमारे मज़ार की