ये माहताब ये सूरज किधर से आए हैं

By mustahsin-khayalNovember 10, 2020
ये माहताब ये सूरज किधर से आए हैं
ये कौन लोग हैं ये किस नगर से आए हैं
यही बहुत है मिरी उँगलियाँ सलामत हैं
ये दिल के ज़ख़्म तो अर्ज़-ए-हुनर से आए हैं


बहुत से दर्द मुदावा-तलब थे पहले भी
अब और ज़ख़्म मिरे चारागर से आए हैं
गिरा दिया है जिसे आँधियों के ज़ोर ने कल
ये ख़ुश-नवा उसी बूढ़े शजर से आए हैं


रुके नहीं हैं कहीं क़ाफ़िले तमन्ना के
फ़राज़-ए-दार ये लम्बे सफ़र से आए हैं
हम अपने-आप को कुछ अजनबी से लगते हैं
कि जब से लौट कर उस के नगर से आए हैं


हर एक ख़त में नगीने जड़े हैं मैं ने 'ख़याल'
बहुत से लफ़्ज़ मिरी चश्म-ए-तर से आए हैं
14239 viewsghazalHindi