ये मत समझना कोई बद-नुमा सा दाग़ हैं हम किसी की आँख का जलता हुआ चराग़ हैं हम मिलेगा हम से ही तुझ को पता मोहब्बत का हमें सँभाल के रख आख़िरी सुराग़ हैं हम हमारे जलने जलाने से फ़ाएदा क्या है कि अपने ताक़ से बिछड़े हुए चराग़ हैं हम लपेट रक्खा है ख़ुद को अना की चादर में सबब यही है कि अंदर से दाग़-दाग़ हैं हम किसी के प्यार को हम मस्लहत समझ बैठे यक़ीन हो गया 'नादिर' कि बे-दिमाग़ हैं हम