ये मिरे घर के तीन चार दरख़्त
By ikram-arfiFebruary 6, 2024
ये मिरे घर के तीन चार दरख़्त
हैं दिसावर के तीन चार दरख़्त
फिर हवा शाख़ शाख़ से लिपटी
आश्ना कर के तीन चार दरख़्त
जैसे काग़ज़ की एक दो कलियाँ
जैसे पत्थर के तीन चार दरख़्त
दश्त दरपेश है सो चलता हूँ
आँख में भर के तीन चार दरख़्त
शाह ने बाग़ में उगाए हैं
संग-ए-मरमर के तीन चार दरख़्त
दश्त-ए-दिल इस क़दर फला-फूला
देखे मर मर के तीन चार दरख़्त
आख़िरी वक़्त बस हवाएँ थीं
और सनोबर के तीन चार दरख़्त
हैं दिसावर के तीन चार दरख़्त
फिर हवा शाख़ शाख़ से लिपटी
आश्ना कर के तीन चार दरख़्त
जैसे काग़ज़ की एक दो कलियाँ
जैसे पत्थर के तीन चार दरख़्त
दश्त दरपेश है सो चलता हूँ
आँख में भर के तीन चार दरख़्त
शाह ने बाग़ में उगाए हैं
संग-ए-मरमर के तीन चार दरख़्त
दश्त-ए-दिल इस क़दर फला-फूला
देखे मर मर के तीन चार दरख़्त
आख़िरी वक़्त बस हवाएँ थीं
और सनोबर के तीन चार दरख़्त
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