ये मिरी ज़िंदगी किसी की है फ़िक्र मत कीजे आप ही की है जो ख़फ़ा है उसे मनाना है इस लिए हम ने शा'इरी की है जिन को माना था दिल-'अज़ीज़ कभी उन्ही अपनों ने दुश्मनी की है ठोकरें लाख खाईं हम ने मगर सिर्फ़ इक रब की बंदगी की है उस हसीना के बिन जियें कैसे टूट कर जिस से दिल-लगी की है 'इश्क़ कर के पता चला हम को हम ने जीते जी ख़ुदकुशी की है तुम को 'परवेज़' क्या हुआ है आज इक हसीना से दोस्ती की है