ये शहर अपने हरीफ़ों से हारा थोड़ी है

By jamal-ehsaniFebruary 26, 2024
ये शहर अपने हरीफ़ों से हारा थोड़ी है
ये बात सब पे मगर आश्कारा थोड़ी है
तिरा फ़िराक़ तो रिज़्क़-ए-हलाल है मुझ को
ये फल पराए शजर से उतारा थोड़ी है


जो 'इश्क़ करता है चलती हवा से लड़ता है
ये झगड़ा सिर्फ़ हमारा तुम्हारा थोड़ी है
दर-ए-निगाह पे उस के जो हम ने 'उम्र गँवाई
ये फ़ाएदा है मिरी जाँ ख़सारा थोड़ी है


ये लोग तुझ से हमें दूर कर रहे हैं मगर
तिरे बग़ैर हमारा गुज़ारा थोड़ी है
'जमाल' आज तो जाने की मत करो जल्दी
कि फिर नसीब ये सोहबत दुबारा थोड़ी है


99359 viewsghazalHindi