ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं

By aalok-shrivastavApril 20, 2024
ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं
मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बे-ख़बर नहीं
अब तो ख़ुद अपने ख़ून ने भी साफ़ कह दिया
मैं आप का रहूँगा मगर 'उम्र भर नहीं


आ ही गए हैं ख़्वाब तो फिर जाएँगे कहाँ
आँखों से आगे उन की कोई रहगुज़र नहीं
कितना जिएँ कहाँ से जिएँ और किस लिए
ये इख़्तियार हम पे है तक़दीर पर नहीं


माज़ी की राख उलटीं तो चिंगारियाँ मिलीं
बे-शक किसी को चाहो मगर इस क़दर नहीं
76860 viewsghazalHindi