ये तमन्ना नहीं अब दाद-ए-हुनर दे कोई

By khalilur-rahman-azmiFebruary 27, 2024
ये तमन्ना नहीं अब दाद-ए-हुनर दे कोई
आ के मुझ को मिरे होने की ख़बर दे कोई
एक मुद्दत से है दिल कासा-ए-ख़ाली की तरह
किसी शीशे में लहू होवे तो भर दे कोई


हर जगह साथ रहेगी यही दीवार की क़ैद
सर उठाने को हमें कौन सा घर दे कोई
मीर-ए-महफ़िल को गवारा नहीं ये तर्ज़-ए-कलाम
शम'-ए-कुश्ता को जो ‘उनवान-ए-सहर दे कोई


साहिब-ए-फ़न को बस इक ग़ुंचा-ए-तख़्लीक़ बहुत
वर्ना बे-सूद अगर 'उम्र-ए-ख़िज़र दे कोई
45705 viewsghazalHindi