ये तमन्ना नहीं कि मर जाएँ

ये तमन्ना नहीं कि मर जाएँ
ज़िंदा रहने मगर किधर जाएँ

ऐसी दहशत कि अपने सायों को
लोग दुश्मन समझ के डर जाएँ

वो जो पूछे तो दिल को ढारस हो
वो जो देखे तो ज़ख़्म भर जाएँ

बच के दुनिया से घर चले आए
घर से बचने मगर किधर जाएँ

इक ख़्वाहिश है जिस्म से मेरे
जल्द से जल्द बाल-ओ-पर जाएँ

अब के लम्बा बहुत सफ़र इन का
इन परिंदों के पर कतर जाएँ

सोचते ही रहेंगे हम शायद
वो बलाएँ तो उन के घर जाएँ


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