ये तेरी चाह के गुल किस तरह उतरते हैं
By bilal-sabirMarch 1, 2024
ये तेरी चाह के गुल किस तरह उतरते हैं
कि तुझ से शहर के अंधे भी 'इश्क़ करते हैं
ये तेरी ज़ुल्फ़ों के नश्शे में कौन खोया है
ये ज़ा’फ़रान इधर के किधर बिखरते हैं
उधर किसी के लबों पर चढ़े किसी के लब
इधर ग़ज़ल में मिरे ज़ख़्म कुछ उभरते हैं
हुज़ूर आप का आईना भी है ना-महरम
तो इस के आगे भला किस लिए सँवरते हैं
जहाँ में आए हैं मरने के वास्ते 'साबिर'
उस एक शख़्स पे बस इस लिए ही मरते हैं
कि तुझ से शहर के अंधे भी 'इश्क़ करते हैं
ये तेरी ज़ुल्फ़ों के नश्शे में कौन खोया है
ये ज़ा’फ़रान इधर के किधर बिखरते हैं
उधर किसी के लबों पर चढ़े किसी के लब
इधर ग़ज़ल में मिरे ज़ख़्म कुछ उभरते हैं
हुज़ूर आप का आईना भी है ना-महरम
तो इस के आगे भला किस लिए सँवरते हैं
जहाँ में आए हैं मरने के वास्ते 'साबिर'
उस एक शख़्स पे बस इस लिए ही मरते हैं
33596 viewsghazal • Hindi