ये ज़िंदगी अब और नहीं चाहिए मुझे
By sajid-raheemFebruary 28, 2024
ये ज़िंदगी अब और नहीं चाहिए मुझे
वो दे सके तो मौत हसीं चाहिए मुझे
ये ख़ौफ़ था कि मिल के भी खो जाएगा वो शख़्स
सो मैं ने कह दिया कि नहीं चाहिए मुझे
घर छोड़ना है छोड़ मगर इतना याद रख
जो चीज़ जिस जगह थी वहीं चाहिए मुझे
बेजोड़ दोस्ती है मिरी मेरे दिल के साथ
जो उस को चाहिए है नहीं चाहिए मुझे
मैं इस लिए खिलौना कोई देखता न था
माँ बाप सोच लें न कहीं चाहिए मुझे
इक तो मैं मिस्ल-ए-दश्त कोई रेत का मकाँ
और उस पे मुस्ताज़ाद मकीं चाहिए मुझे
वो दे सके तो मौत हसीं चाहिए मुझे
ये ख़ौफ़ था कि मिल के भी खो जाएगा वो शख़्स
सो मैं ने कह दिया कि नहीं चाहिए मुझे
घर छोड़ना है छोड़ मगर इतना याद रख
जो चीज़ जिस जगह थी वहीं चाहिए मुझे
बेजोड़ दोस्ती है मिरी मेरे दिल के साथ
जो उस को चाहिए है नहीं चाहिए मुझे
मैं इस लिए खिलौना कोई देखता न था
माँ बाप सोच लें न कहीं चाहिए मुझे
इक तो मैं मिस्ल-ए-दश्त कोई रेत का मकाँ
और उस पे मुस्ताज़ाद मकीं चाहिए मुझे
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