यूँ ग़मों से नजात पाऊँ क्या
By abrar-asarJune 19, 2024
यूँ ग़मों से नजात पाऊँ क्या
तेरी फ़ुर्क़त में मर ही जाऊँ क्या
शिर्क-ओ-बिद’अत में डूब जाऊँ क्या
हर किसी दर पे सर झुकाऊँ क्या
झूट कहता नहीं हूँ मैं जानम
आप को यूँ यक़ीं दिलाऊँ क्या
आप ही आप हैं बसे इस में
अपना दिल चीर कर दिखाऊँ क्या
मुस्कुराऊँ नहीं तो तुम ही कहो
अश्क ज़ख़्मों पे मैं बहाऊँ क्या
जीत पाया नहीं तुम्हारा दिल
हौसला अब मैं हार जाऊँ क्या
आप आसाँ सफ़र समझते हैं
आबले पाँव के दिखाऊँ क्या
ये क़लम क्यों 'असर' नहीं चलता
इस को ख़ून-ए-जिगर पिलाऊँ क्या
तेरी फ़ुर्क़त में मर ही जाऊँ क्या
शिर्क-ओ-बिद’अत में डूब जाऊँ क्या
हर किसी दर पे सर झुकाऊँ क्या
झूट कहता नहीं हूँ मैं जानम
आप को यूँ यक़ीं दिलाऊँ क्या
आप ही आप हैं बसे इस में
अपना दिल चीर कर दिखाऊँ क्या
मुस्कुराऊँ नहीं तो तुम ही कहो
अश्क ज़ख़्मों पे मैं बहाऊँ क्या
जीत पाया नहीं तुम्हारा दिल
हौसला अब मैं हार जाऊँ क्या
आप आसाँ सफ़र समझते हैं
आबले पाँव के दिखाऊँ क्या
ये क़लम क्यों 'असर' नहीं चलता
इस को ख़ून-ए-जिगर पिलाऊँ क्या
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