यूँ तो सब के लिए क्या क्या न इशारे निकले
By salim-saleemFebruary 28, 2024
यूँ तो सब के लिए क्या क्या न इशारे निकले
मिरे हिस्से में तो अब के भी ख़सारे निकले
मुझ में इक रोज़ कोई क़त्ल हुआ था और फिर
मिरी आँखों से बहुत ख़ून के धारे निकले
अपने जैसी कोई तस्वीर बनानी थी मुझे
मिरे अंदर से सभी रंग तुम्हारे निकले
मैं ने समझा था कि नम-ख़ुर्दा है मेरी मिट्टी
छू के देखा तो तह-ए-ख़ाक शरारे निकले
अहल-ए-दुनिया से कोई जंग थी दर-पेश हमें
हम भी क्या लोग थे ख़्वाबों के सहारे निकले
लौट कर आ गए सहरा की तरफ़ आख़िर-कार
सब तिरे शहर में तन्हाई के मारे निकले
मैं ने महसूस किया ही था तुझे आज की शाम
रात जब आई तो पलकों पे सितारे निकले
मिरे हिस्से में तो अब के भी ख़सारे निकले
मुझ में इक रोज़ कोई क़त्ल हुआ था और फिर
मिरी आँखों से बहुत ख़ून के धारे निकले
अपने जैसी कोई तस्वीर बनानी थी मुझे
मिरे अंदर से सभी रंग तुम्हारे निकले
मैं ने समझा था कि नम-ख़ुर्दा है मेरी मिट्टी
छू के देखा तो तह-ए-ख़ाक शरारे निकले
अहल-ए-दुनिया से कोई जंग थी दर-पेश हमें
हम भी क्या लोग थे ख़्वाबों के सहारे निकले
लौट कर आ गए सहरा की तरफ़ आख़िर-कार
सब तिरे शहर में तन्हाई के मारे निकले
मैं ने महसूस किया ही था तुझे आज की शाम
रात जब आई तो पलकों पे सितारे निकले
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