ज़हे नसीब कि इम्कान-ए-ज़ीस्त अब तक है

By abu-hurrairah-abbasiSeptember 2, 2024
ज़हे नसीब कि इम्कान-ए-ज़ीस्त अब तक है
तुम्हारा हिज्र ही उन्वान-ए-ज़ीस्त अब तक है
किसे पड़ी है जो आ कर सुने कहानी मिरी
मिरे वुजूद पे बोहतान-ए-ज़ीस्त अब तक है


बहुत ही दीदनी मंज़र था मेरी वहशत का
तभी से चाक गरेबान-ए-ज़ीस्त अब तक है
मोहब्बतों में अज़ल से सभी ने ग़म ही सहा
मोहब्बतों में तो नुक़्सान-ए-ज़ीस्त अब तक है


निकाला जिस को बग़ावत पे था क़बीले ने
नहीं मरा वो तो मेहमान-ए-ज़ीस्त अब तक है
कहाँ मिलेंगे सँवारेंगे एक दूजे को
तिरी तलब मुझे दौरान-ए-ज़ीस्त अब तक है


अभी क़लम भी है बाक़ी मिरे ये मिसरे भी
मिरी तो कुटिया में सामान-ए-ज़ीस्त अब तक है
कभी भी याद मुसीबत में ग़ैर को न किया
मिरा ख़ुदा ही निगहबान-ए-ज़ीस्त अब तक है


88762 viewsghazalHindi