ज़ख़्म मोहब्बत पागलपन बीमारी तलब कुछ है
By ananth-faaniFebruary 25, 2024
ज़ख़्म मोहब्बत पागलपन बीमारी तलब कुछ है
ग़ज़ल को है दरकार ये सारा कुछ साहब कुछ है
चुप क्यों नहीं बैठे थे जब कहने को कुछ नहीं था
और अब क्यों चुप बैठे हो कहने को जब कुछ है
'इश्क़ के सुर दिल से ऐसे ही कहाँ निकलते हैं
साज़ उस्ताद ने छेड़ा तो संगीत सा अब कुछ है
इक दिन दिख जाएगा शायद सब कुछ माया है
उस दिन तक तो लेकिन ये माया ही सब कुछ है
वर्ना कुछ भी कह के बुला लेता था जो हम को
आज 'अनन्त' कहा उस ने इस का मतलब कुछ है
ग़ज़ल को है दरकार ये सारा कुछ साहब कुछ है
चुप क्यों नहीं बैठे थे जब कहने को कुछ नहीं था
और अब क्यों चुप बैठे हो कहने को जब कुछ है
'इश्क़ के सुर दिल से ऐसे ही कहाँ निकलते हैं
साज़ उस्ताद ने छेड़ा तो संगीत सा अब कुछ है
इक दिन दिख जाएगा शायद सब कुछ माया है
उस दिन तक तो लेकिन ये माया ही सब कुछ है
वर्ना कुछ भी कह के बुला लेता था जो हम को
आज 'अनन्त' कहा उस ने इस का मतलब कुछ है
16992 viewsghazal • Hindi