ज़ख़्म सीते हुए मुस्कुराते हुए

By afzal-ali-afzalMay 22, 2024
ज़ख़्म सीते हुए मुस्कुराते हुए
साल गुज़रा है ज़ब्त आज़माते हुए
उस ने रोका मुझे शहर से आते वक़्त
मैं भी रोया बहुत गाँव जाते हुए


अक्स तेरा ही देखा है मैं ने सनम
आज भी बाल अपने बनाते हुए
अश्क बहने लगे तेज़ धड़कन हुई
इक ग़ज़ल 'मीर' की गुनगुनाते हुए


शहर प्यारा है तुम को कि तुम ने कभी
खेत देखे नहीं लहलहाते हुए
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