ज़मीन हस्ब-ए-ज़रूरत उगाई जाती है
By nomaan-shauqueFebruary 28, 2024
ज़मीन हस्ब-ए-ज़रूरत उगाई जाती है
फिर एक साँचे में ख़िल्क़त बनाई जाती है
ख़बर में हैं जो कई ज़र-ख़रीद क़िस्सा-गो
हमें उन्हीं की कहानी सुनाई जाती है
हमारी बज़्म में जलते नहीं चराग़ के साथ
यहाँ चराग़ की दहशत जलाई जाती है
तमाम रात का जागा हूँ मा'ज़रत मिरे दोस्त
बुरा न मान अगर नींद आई जाती है
हमारे जाम में इल्ज़ाम के सिवा नहीं कुछ
हमें शराब की तोहमत पिलाई जाती है
मैं ख़ुद से जंग का ए'लान करने वाला हूँ
जो हारी जाती नहीं है हराई जाती है
हमारे 'अह्द का सरमाया हैं ये तालिब-ए-‘इल्म
इन्हें किताब से नफ़रत सिखाई जाती है
ज़मीन पर है तमाम अंधे 'आशिक़ों का हुजूम
यहाँ वफ़ा भी नहीं आज़माई जाती है
ये कैसे ख़्वाब की तकमील में लगा है जहाँ
कि ज़ह्र दे के मोहब्बत सुलाई जाती है
फिर एक साँचे में ख़िल्क़त बनाई जाती है
ख़बर में हैं जो कई ज़र-ख़रीद क़िस्सा-गो
हमें उन्हीं की कहानी सुनाई जाती है
हमारी बज़्म में जलते नहीं चराग़ के साथ
यहाँ चराग़ की दहशत जलाई जाती है
तमाम रात का जागा हूँ मा'ज़रत मिरे दोस्त
बुरा न मान अगर नींद आई जाती है
हमारे जाम में इल्ज़ाम के सिवा नहीं कुछ
हमें शराब की तोहमत पिलाई जाती है
मैं ख़ुद से जंग का ए'लान करने वाला हूँ
जो हारी जाती नहीं है हराई जाती है
हमारे 'अह्द का सरमाया हैं ये तालिब-ए-‘इल्म
इन्हें किताब से नफ़रत सिखाई जाती है
ज़मीन पर है तमाम अंधे 'आशिक़ों का हुजूम
यहाँ वफ़ा भी नहीं आज़माई जाती है
ये कैसे ख़्वाब की तकमील में लगा है जहाँ
कि ज़ह्र दे के मोहब्बत सुलाई जाती है
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