ज़मीन-ओ-आसमाँ से आश्ना हूँ

By mast-hafiz-rahmaniFebruary 27, 2024
ज़मीन-ओ-आसमाँ से आश्ना हूँ
मगर ख़ुद से मैं बेगाना रहा हूँ
मैं आया किस लिए था और किया क्या
ये तन्हाई में अक्सर सोचता हूँ


मिज़ाज-ए-ग़म से तुम वाक़िफ़ नहीं हो
मैं शहर-ए-ग़म का शहज़ादा रहा हूँ
ख़ला में हर तरफ़ मेरी सदा थी
मगर ऐसा भी है अब बे-सदा हूँ


हज़ारों आरज़ूएँ साथ अपने
अकेला हो के भी इक क़ाफ़िला हूँ
मुक़ाबिल में हज़ारों हादसे हैं
मुझे देखो मैं फिर भी हँस रहा हूँ


16630 viewsghazalHindi