ज़मीं से ऊँचा हद-ए-आसमान पर रख दे
By abul-lais-javedSeptember 4, 2024
ज़मीं से ऊँचा हद-ए-आसमान पर रख दे
शु'ऊर-ए-ज़ात को ऊँचे निशान पर रख दे
बुलंदियाँ जिसे चाहें तो ऐसा शाहीं है
हवा न देख परों को उड़ान पर रख दे
मैं तेरा अम्न हूँ तरकश में क़ैद हूँ कब से
कभी मुझे भी उठा कर कमान पर रख दे
कड़ी सी धूप में एहसास ही न खो जाए
कोई भी ज़ाइक़ा मेरी ज़बान पर रख दे
तू अपने ख़ून का इन ज़ालिमों की बस्ती से
सिला न माँग लहू को चटान पर रख दे
शु'ऊर-ए-ज़ात को ऊँचे निशान पर रख दे
बुलंदियाँ जिसे चाहें तो ऐसा शाहीं है
हवा न देख परों को उड़ान पर रख दे
मैं तेरा अम्न हूँ तरकश में क़ैद हूँ कब से
कभी मुझे भी उठा कर कमान पर रख दे
कड़ी सी धूप में एहसास ही न खो जाए
कोई भी ज़ाइक़ा मेरी ज़बान पर रख दे
तू अपने ख़ून का इन ज़ालिमों की बस्ती से
सिला न माँग लहू को चटान पर रख दे
93334 viewsghazal • Hindi