ज़मीन थामे रहूँ सर पे आसमाँ ले जाऊँ
By salim-saleemFebruary 28, 2024
ज़मीन थामे रहूँ सर पे आसमाँ ले जाऊँ
कहाँ तलक मैं ये हंगामा-ए-गुमाँ ले जाऊँ
चलो हिसाब वफ़ाओं का कर लिया जाए
तमाम नफ़' तुम्हारा हो मैं ज़ियाँ ले जाऊँ
सभी उदास मिले क़हक़हों की बस्ती में
तो फिर मैं क्यों न वहाँ दर्द की ज़बाँ ले जाऊँ
तुम्हीं ने मुझ से कहा था ये ‘इश्क़-विश्क़ है क्या
तुम्हीं बताओ मैं ये ज़िंदगी कहाँ ले जाऊँ
बदन से रूह तलक फ़ासला बहुत होगा
सो इस सफ़र के लिए मैं भी रख़्त-ए-जाँ ले जाऊँ
कहाँ तलक मैं ये हंगामा-ए-गुमाँ ले जाऊँ
चलो हिसाब वफ़ाओं का कर लिया जाए
तमाम नफ़' तुम्हारा हो मैं ज़ियाँ ले जाऊँ
सभी उदास मिले क़हक़हों की बस्ती में
तो फिर मैं क्यों न वहाँ दर्द की ज़बाँ ले जाऊँ
तुम्हीं ने मुझ से कहा था ये ‘इश्क़-विश्क़ है क्या
तुम्हीं बताओ मैं ये ज़िंदगी कहाँ ले जाऊँ
बदन से रूह तलक फ़ासला बहुत होगा
सो इस सफ़र के लिए मैं भी रख़्त-ए-जाँ ले जाऊँ
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