ज़र्रे ज़र्रे में निहाँ एक नगीं था पहले
By ali-tasifJune 3, 2024
ज़र्रे ज़र्रे में निहाँ एक नगीं था पहले
लेकिन इस दश्त में दिल और कहीं था पहले
आसमाँ मुझ को कहाँ सर्फ़ किए जाता है
मुझ को इस बात का एहसास नहीं था पहले
वक़्त ख़ुद उस को फ़क़ीरी की तरफ़ ले आया
जो फ़क़ीरों पे बहुत चीं-ब-जबीं था पहले
कूचा-ए-जोश-ओ-जुनूँ देख के दिल डूब गया
इन मकानों में बहुत शोर-ए-मकीं था पहले
आप ज़हमत-कश-ए-उम्मीद कहाँ होते थे
वर्ना हर बात का इम्कान यहीं था पहले
ऐसा माऊफ़ किया टूटे इरादों ने मुझे
जो गुमाँ आज गुज़रता है यक़ीं था पहले
हर गुल-ए-नौ की अदा याद दिला जाती है
हू-ब-हू मैं भी कभी नाज़ ब-ईं था पहले
तश्त-अज़-बाम किए कार-ए-सुख़न-दानी ने
वर्ना दिल कितने ही राज़ों का अमीं था पहले
गुंजलक नुक़्ता-ए-सादा को बनाया 'तासिफ़'
ऐसा मुश्किल भी कहाँ दीन-ए-मुबीं था पहले
लेकिन इस दश्त में दिल और कहीं था पहले
आसमाँ मुझ को कहाँ सर्फ़ किए जाता है
मुझ को इस बात का एहसास नहीं था पहले
वक़्त ख़ुद उस को फ़क़ीरी की तरफ़ ले आया
जो फ़क़ीरों पे बहुत चीं-ब-जबीं था पहले
कूचा-ए-जोश-ओ-जुनूँ देख के दिल डूब गया
इन मकानों में बहुत शोर-ए-मकीं था पहले
आप ज़हमत-कश-ए-उम्मीद कहाँ होते थे
वर्ना हर बात का इम्कान यहीं था पहले
ऐसा माऊफ़ किया टूटे इरादों ने मुझे
जो गुमाँ आज गुज़रता है यक़ीं था पहले
हर गुल-ए-नौ की अदा याद दिला जाती है
हू-ब-हू मैं भी कभी नाज़ ब-ईं था पहले
तश्त-अज़-बाम किए कार-ए-सुख़न-दानी ने
वर्ना दिल कितने ही राज़ों का अमीं था पहले
गुंजलक नुक़्ता-ए-सादा को बनाया 'तासिफ़'
ऐसा मुश्किल भी कहाँ दीन-ए-मुबीं था पहले
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