ज़रूर भूल हुई है कहीं सुनाने में
By nomaan-shauqueFebruary 28, 2024
ज़रूर भूल हुई है कहीं सुनाने में
ये वाक़ि'आ तो कहीं भी न था फ़साने में
मिरे लिए ही हुआ एहतिमाम-ए-जश्न मगर
जगह न मिल सकी मुझ को ही शामियाने में
फ़रेफ़्ता है हर इक शख़्स अपनी सूरत पर
मैं आ गया हूँ ये कैसे फ़रेब-ख़ाने में
अंधेरे और घने हद से भी घने होंगे
वो चूक अब के हुई है दिया जलाने में
बड़े घरों में रही है बहुत ज़माने तक
ख़ुशी का जी नहीं लगता ग़रीब-ख़ाने में
ये वाक़ि'आ तो कहीं भी न था फ़साने में
मिरे लिए ही हुआ एहतिमाम-ए-जश्न मगर
जगह न मिल सकी मुझ को ही शामियाने में
फ़रेफ़्ता है हर इक शख़्स अपनी सूरत पर
मैं आ गया हूँ ये कैसे फ़रेब-ख़ाने में
अंधेरे और घने हद से भी घने होंगे
वो चूक अब के हुई है दिया जलाने में
बड़े घरों में रही है बहुत ज़माने तक
ख़ुशी का जी नहीं लगता ग़रीब-ख़ाने में
89629 viewsghazal • Hindi