ज़िंदा रहने की अज़िय्यत ही नहीं है कुछ कम
By salim-saleemFebruary 28, 2024
ज़िंदा रहने की अज़िय्यत ही नहीं है कुछ कम
और मरने का भी अंदेशा लगा रहता है
‘अक्स-दर-‘अक्स सभी क़ैद हुए जाते हैं
उस के दरवाज़े पे आईना लगा रहता है
सिर्फ़ इक तू ही नहीं अपने बदन के हमराह
मेरे पीछे भी कोई साया लगा रहता है
जम' होते हैं यहीं पर तिरे बिखरे हुए ख़्वाब
साहिल-ए-चश्म पे इक मेला लगा रहता है
ख़त्म होती ही नहीं है मिरी आशुफ़्ता-सरी
उस गली में मिरा सरमाया लगा रहता है
और मरने का भी अंदेशा लगा रहता है
‘अक्स-दर-‘अक्स सभी क़ैद हुए जाते हैं
उस के दरवाज़े पे आईना लगा रहता है
सिर्फ़ इक तू ही नहीं अपने बदन के हमराह
मेरे पीछे भी कोई साया लगा रहता है
जम' होते हैं यहीं पर तिरे बिखरे हुए ख़्वाब
साहिल-ए-चश्म पे इक मेला लगा रहता है
ख़त्म होती ही नहीं है मिरी आशुफ़्ता-सरी
उस गली में मिरा सरमाया लगा रहता है
64862 viewsghazal • Hindi