ज़िंदगी ख़्वाब भी है फ़ित्ना-ए-बेदार भी है
By chandra-parkash-jauhar-bijnauriMay 6, 2022
ज़िंदगी ख़्वाब भी है फ़ित्ना-ए-बेदार भी है
नग़्मा-ए-अम्न भी है नारा-ए-पैकार भी है
शौक़-ए-नज़्ज़ारा भी है जल्वा-गह-ए-यार भी है
देखना है कि हमें जुरअत-ए-दीदार भी है
कौन है जिस को नहीं दा'वा-ए-इरफ़ान-ए-ख़ुदी
इस हक़ीक़त से मगर कोई ख़बर-दार भी है
इन्क़िलाबात का क्या ग़म कि उन्ही के दम से
रौनक़-ए-बज़्म भी है गर्मी-ए-बाज़ार भी है
कुछ तो ख़ुद हुस्न को है जल्वा-नुमाई से गुरेज़
और कुछ मस्लहत-ए-तालिब-ए-दीदार भी है
गर्मी-ए-इश्क़ में दोनों हैं बराबर के शरीक
शम्अ के सोज़ में परवाने का किरदार भी है
अपने माहौल की ना-क़दरी-ए-पैहम का शिकार
आज का फ़न ही नहीं आज का फ़नकार भी है
ज़िंदगी इशरत-ए-पैहम ही नहीं है 'जौहर'
ज़िंदगी जेहद-ए-मुसलसल की तलबगार भी है
नग़्मा-ए-अम्न भी है नारा-ए-पैकार भी है
शौक़-ए-नज़्ज़ारा भी है जल्वा-गह-ए-यार भी है
देखना है कि हमें जुरअत-ए-दीदार भी है
कौन है जिस को नहीं दा'वा-ए-इरफ़ान-ए-ख़ुदी
इस हक़ीक़त से मगर कोई ख़बर-दार भी है
इन्क़िलाबात का क्या ग़म कि उन्ही के दम से
रौनक़-ए-बज़्म भी है गर्मी-ए-बाज़ार भी है
कुछ तो ख़ुद हुस्न को है जल्वा-नुमाई से गुरेज़
और कुछ मस्लहत-ए-तालिब-ए-दीदार भी है
गर्मी-ए-इश्क़ में दोनों हैं बराबर के शरीक
शम्अ के सोज़ में परवाने का किरदार भी है
अपने माहौल की ना-क़दरी-ए-पैहम का शिकार
आज का फ़न ही नहीं आज का फ़नकार भी है
ज़िंदगी इशरत-ए-पैहम ही नहीं है 'जौहर'
ज़िंदगी जेहद-ए-मुसलसल की तलबगार भी है
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