ज़िंदगी ख़्वाब भी है फ़ित्ना-ए-बेदार भी है नग़्मा-ए-अम्न भी है नारा-ए-पैकार भी है शौक़-ए-नज़्ज़ारा भी है जल्वा-गह-ए-यार भी है देखना है कि हमें जुरअत-ए-दीदार भी है कौन है जिस को नहीं दा'वा-ए-इरफ़ान-ए-ख़ुदी इस हक़ीक़त से मगर कोई ख़बर-दार भी है इन्क़िलाबात का क्या ग़म कि उन्ही के दम से रौनक़-ए-बज़्म भी है गर्मी-ए-बाज़ार भी है कुछ तो ख़ुद हुस्न को है जल्वा-नुमाई से गुरेज़ और कुछ मस्लहत-ए-तालिब-ए-दीदार भी है गर्मी-ए-इश्क़ में दोनों हैं बराबर के शरीक शम्अ के सोज़ में परवाने का किरदार भी है अपने माहौल की ना-क़दरी-ए-पैहम का शिकार आज का फ़न ही नहीं आज का फ़नकार भी है ज़िंदगी इशरत-ए-पैहम ही नहीं है 'जौहर' ज़िंदगी जेहद-ए-मुसलसल की तलबगार भी है