ज़िंदगी तू ने 'अजब बात ये बतलाई है

By umood-abrar-ahmadMarch 1, 2024
ज़िंदगी तू ने 'अजब बात ये बतलाई है
इक क़यामत है बपा शहर में रुस्वाई है
ख़ल्वत-ए-जान में गुज़री है मिरी 'उम्र-ए-रवाँ
आप कहते हैं कि बे-नाम सज़ा पाई है


आप को हाल बताऊँ तो बताऊँ कैसे
आप के शहर में हर शख़्स तमाशाई है
एक दिन कैफ़ के 'आलम में पुकारा उस ने
ये वही दश्त है जिस दश्त में तन्हाई है


न तमन्ना न तमाशा न कोई आह भरी
फिर भी आँखों में मिरे दर्द की गहराई है
ग़म हज़ारों थे कि इक और मोहब्बत कर ली
एक रुस्वा को मिली मुफ़्त में रुस्वाई है


मेरी दुनिया में ख़मोशी के 'अलावा नहीं कुछ
आख़िरी वक़्त में ये बात समझ आई है
उस ने जकड़ा है मुझे काँटों के बिस्तर से 'उमूद'
फिर तबस्सुम-भरे होंटों से क़सम खाई है


61071 viewsghazalHindi