हूरों का नुज़ूल
By अकबर-इलाहाबादीMay 30, 2024
अकबर इलाहाबादी एक बार ख़्वाजा हसन निज़ामी के हाँ मेहमान थे। दो तवाइफ़ें हज़रत निज़ामी से ता’वीज़ लेने आईं। ख़्वाजा साहब गाव तकिया से लगे बैठे थे। अचानक उनके दोनों हाथ ऊपर को उठे और इस तरह फैल गए जैसे बच्चे को गोद में लेने के लिए फैलते हैं और बेसाख़्ता ज़बान से निकला
“आइये आइये।”
तवाइफ़ों के चले जाने के बाद अकबर इलाहाबादी यूं गोया हुए
“मैं तो ख़्याल करता था यहाँ सिर्फ़ फ़रिश्ते नाज़िल होते हैं
लेकिन आज तो हूरें भी उतर आईं।” और ये शे’र पढ़ा
फ़क़ीरों के घरों में लुत्फ़ की रातें भी आती हैं
ज़ियारत के लिए अक्सर मुसम्मातें भी आती हैं।
“आइये आइये।”
तवाइफ़ों के चले जाने के बाद अकबर इलाहाबादी यूं गोया हुए
“मैं तो ख़्याल करता था यहाँ सिर्फ़ फ़रिश्ते नाज़िल होते हैं
लेकिन आज तो हूरें भी उतर आईं।” और ये शे’र पढ़ा
फ़क़ीरों के घरों में लुत्फ़ की रातें भी आती हैं
ज़ियारत के लिए अक्सर मुसम्मातें भी आती हैं।
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