ये दिल है, ये जिगर है, ये कलेजा
By January 21, 2020
मुहतरमा बेगम हमीदा सुलतान साहिबा जनरल सेक्रेटरी अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (दिल्ली) के हाँ अली मंज़िल में एक शे’री नशिस्त में मरहूम हज़रत नूह नारवी ग़ज़ल सुना रहे थे। रदीफ़ थी ‘क्या-क्या’ नूह साहिब ने अपनी मख़सूस तहत-उल-लफ्ज़ तर्ज़-ए-अदा में जब ये मिसरा पढ़ा:
ये दिल है
ये जिगर है
ये कलेजा
तो पण्डित हरिचंद अख़्तर बेसाख़्ता कह उठे:
क़साई लाया है सौग़ात क्या-क्या
सुननेवालों का तो क्या ख़ुद हज़रत नूह का हंसते-हंसते बुरा हाल था।
ये दिल है
ये जिगर है
ये कलेजा
तो पण्डित हरिचंद अख़्तर बेसाख़्ता कह उठे:
क़साई लाया है सौग़ात क्या-क्या
सुननेवालों का तो क्या ख़ुद हज़रत नूह का हंसते-हंसते बुरा हाल था।
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