आप-बीती

By tanveer-naqviJune 17, 2022
मन की बात कही न जाए
मन की बात कही न जाए
मन का भेद कहूँ क्या उन से
लब तक आकर रह जाता है


उन से जो शिकवा है मुझ को
अश्कों में ही बह जाता है
कौन है मुझ को जो समझाए
मन की बात कही न जाए


क्यूँकर बोलूँ उन से सजनी
कैसी गुज़रीं मेरी रातें
कितना फीका सावन बीता
कितनी सूनी थीं बरसातें


नैनन दुख के नीर बहाए
मन की बात कही न जाए
इक पल चैन न पाऊँ उन बिन
याद आते हैं जागते सोते


दिन बीते है आहें भरते
रात कटे है रोते रोते
जीने से अब जी घबराए
मन की बात कही न जाए


याद नहीं रहती हैं बातें
प्रेम में होश भी खो देती हूँ
कहती हूँ कह दूँगी सब कुछ
जब आते हैं रो देती हूँ


दिल की दिल ही में रह जाए
मन की बात कही न जाए
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