अबद-गज़ीदा

By abid-razaJanuary 14, 2025
अबद-गज़ीदा
ख़िज़ाँ-रसीदा
बदन-दरीदा
कहाँ चला है तू सर-बुरीदा


अजल की बारात जा रही है
ये कौन डमरू बजा रहा है
फ़ना की देवी नई वबाओं की ताज़ा फ़स्लें उगा रही है
'अजब घड़ी है


'अदम की बस्ती में भैरवीं गाई जा रही है
मगर तहय्युर के आसमानों में इक सितारा
तिलिस्म-ए-हस्ती के ख़ुश्क होते समुंदरों से
बस एक क़तरा


अबद की गहरी सियाहियों में
वो एक बे-जिस्म
रौशनी का हक़ीर ज़र्रा
वो एक ज़र्रा कि जिस के दम से दमक उठेंगी


न-जाने कितनी ही कहकशाएँ
वरीद-ए-जाँ से टपकने वाली उमीद का बे-मिसाल जौहर
'अजब करिश्मे दिखा रहा है
कई फ़रिश्ते तबाहियों के


अजल के कितने ही देवता
अपनी हैरत की चिलमनों से निकल के बाहर
ये दम-ब-ख़ुद उस से पूछते हैं
तू अपने जूतों समेत मा'बद में कैसे पहुँचा


76556 viewsnazmHindi