अगर मुझे ये गुमान भी हो कि ख़्वाब में मैं न देख पाऊँगा तेरा चेहरा गुदाज़ बाँहें उदास आँखें मिरे लबों को तलाश करते हुए तिरे लब क़सम है मुझ को गुज़रती नद्दी के पानियों की मैं अपनी नींदें जला के रख दूँ अगर मुझे ये यक़ीन भी हो कि सब्ज़ पत्ते हवा की आहट न सुन सकेंगे गुलाब मौसम बरसती बारिश न सह सकेगा चमकती शाख़ों पे इक शगूफ़ा न रह सकेगा तो फिर भी मैं तेरा नाम ले कर तरसती आँखों को बंद कर लूँ कि नींद आए तो मैं तिरे ख़्वाब देख पाऊँ ये ख़्वाहिशें हैं कि संग-रेज़े जो आसमानों से मेरे दिल पर बरस रहे हैं ये धूप है या अज़िय्यतों का सराब-ए-दोज़ख़ ये लोग हैं या ख़ला की वुसअ'त में दूर होते हुए सितारे कहाँ गया नींद का परिंदा परों से लोरी सुनाने वाला वो तेरे मंज़र दिखाने वाला