अमरूद और मुल्ला जी

By lateef-farooqiJune 17, 2021
किसी क़स्बे में एक था अमरूद
बीसों में वो नेक था अमरूद
पढ़ने जाता था वो नमाज़ वहाँ
आदमी इक नज़र न आए जहाँ


ख़ौफ़ उस को हमेशा रहता था
आदमी कोई मुझ को खा लेगा
शौक़ बोला कि एक दिन जाओ
किसी मस्जिद में जा नमाज़ पढ़ो


छोटी सी मस्जिद इक क़रीब ही थी
थे वहाँ डट के बैठे मुल्ला जी
चुपके चुपके ख़ुदा की ले कर आस
चल के जा बैठा जूतियों के पास


जूँही सज्दे में उस ने रखा सर
आए मुल्ला जी उस तरफ़ उठ कर
ऐसे मुल्ला नदीदे होते हैं
देख के खाने होश खोते हैं


हलवा खाते हैं नान खाते हैं
जब मिले कुछ न जान खाते हैं
झपटे उस पर पकड़ लिया अमरूद
चीख़ा चिल्लाया रो पड़ा अमरूद


कहा अमरूद ने कि मुल्ला जी
हो अगर आज मेरी जाँ-बख़्शी
फल खिलाउँगा आप को ऐसा
अच्छा मुझ से है ज़ाइक़ा जिस का


फिर कहा ये कि मेरे साथ आएँ
जिस जगह मैं कहूँ ठहर जाएँ
इक दुकाँ के क़रीब आ के कहा
आईये देखिए है कैसा मज़ा


केला जल्दी से इक उठा लीजे
और मस्जिद में चल के खा लीजिए
मालिक उस का वहाँ न था मौजूद
मुल्ला मौजूद था ख़ुदा मौजूद


केला मस्जिद के पास ले के चले
चलते चलते वो आख़िर आ पहुँचे
कहा अमरूद ने निकालिए आप
छील कर केला उस को खाइए आप


लगे मस्जिद में जाने जब खा कर
आ गया उन का पाँव छिलके पर
वाए क़िस्मत कि आप ऐसे गिरे
एक घंटे से पहले उठ न सके


मौक़ा पाते ही चल दिया अमरूद
दे के मुल्ला को जुल गया अमरूद
हिर्स का ख़ूब ही मज़ा पाया
दूध उन को छटी का याद आया


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