ग़ैर-फ़ितरी तहफ़्फ़ुज़ की मजबूरियाँ आदमी आज कीड़े-मकोड़े की मानिंद फिर रेंगने लग गया जिन में जीने की कुछ अहलियत ही नहीं वो भी ज़िंदा हैं और ज़िंदा रहने के हक़दार लोगों का हक़ खा रहे हैं बोझ धरती के सीने का बढ़ता चला जा रहा है उठा दो ये सारे क़वानीन बे-जा ज़मीनों को आज़ाद कर दो उसूल-ए-अज़ल और क़ानून-ए-फ़ितरत ज़मीं पर अज़ल ही की मानिंद चल जाएगा ज़िंदा रहने की ताक़त तमन्ना इरादा सई जिन में होगी वो ज़िंदा रहेंगे बाक़ी नाकारा मर जाएँगे बोझ धरती के सीने का टल जाएगा और फिर साफ़-सुथरी नई ख़ूबसूरत सी दुनिया उभर आएगी