गोशा-ए-दिल में तेरा दर्द छुपाया मैं ने चश्म-ए-तर को भी न ये राज़ बताया मैं ने कौन वो शब है जो बे-अश्क बहाए गुज़री कौन वो ग़म है जो दिल पर न उठाया मैं ने की ज़माने से कभी कोई शिकायत न गिला अपने रिसते हुए ज़ख़्मों को छुपाया मैं ने अब तो दम ज़ब्त की शिद्दत से घटा जाता है इस क़दर दर्द को सीने में दबाया मैं ने हैफ़ बर हाल दिल-ए-ज़ार कि आईना हुआ लाख पर्दे में हर इक राज़ छुपाया मैं ने ज़िंदगी गुज़री है बे-कैफ़ सी यारब फिर भी गरचे हँस हँस के हर इक ग़म को मिटाया मैं ने किस ने ये कश्मकश-ए-शाम-ए-अलम देखी है जब कोई दर्द उठा दिल में दबाया मैं ने कब तक इस तौर से 'नाशाद' गुज़ारूँगी हयात जब ख़ुशी कोई मिली अश्क बहाया में ने