बहर-ए-ग़म का किनारा

By raabia-sultana-nashadNovember 13, 2020
सब ने मुझ से किया है किनारा
सिर्फ़ तेरा है यारब सहारा
अश्क-ए-ग़म यूँही बहते रहेंगे
या रुकेगा कभी ग़म का धारा


मेरी कश्ती है तूफ़ाँ की ज़द में
मिल गया बहर-ए-ग़म का किनारा
ज़ब्त की भी कोई इंतिहा है
मैं कहाँ तक करूँ ग़म गवारा


सू-ए-मंज़िल बढ़ी हूँ मैं यारब
तेरी रहमत का ले कर सहारा
किस तरह हाल दिल का छुपाऊँ
जो हो चेहरे से ग़म आश्कारा


हम ज़माने में सब के हैं 'नाशाद'
और कोई नहीं है हमारा
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