बारात का घोड़ा
By shariq-kaifiFebruary 29, 2024
ख़ुदा
तू ने मुझे घोड़ा बनाया तो
मगर बारात का
जिस के आगे नाचते रहते हैं लोग
नोट दाँतों में दबाए
क्या नज़र में हैं तिरी वो ज़ुल्म
जो मुझ पर हुए हैं इस करम की आड़ में
रेस के मैदान के बदले
किसी मंडप तलक का ये सफ़र
कितना थका देता है मुझ को
क्या तुझे मा'लूम है
क्या तुझे मा'लूम है दूल्हे का बोझ
उस को बैठाने की ज़िम्मेदारियाँ
और उस पर इस क़दर हस्सास दिल
जो समझ सकता है इस दिन के म'आनी क्या हैं दूल्हे के लिए
कोई कैसा भी पटाख़ा छोड़ दे पैरों में मेरे
शोर से बाजे के मेरे कान भी फट जाएँ तो क्या
चाल में अपनी ज़रा सा फ़र्क़ मैं आने न दूँगा
पीठ पर बैठे हुए दूल्हे की 'इज़्ज़त मेरी 'इज़्ज़त
हाँ मगर ये भी ख़याल आता है अक्सर
मैं तो हर ज़िल्लत उठा कर
अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूरी करूँगा और करता आ रहा हूँ
तू मगर कब इस तरह सोचेगा उस मख़्लूक़ के बारे में
जो तेरी अमाँ में है
तू ने मुझे घोड़ा बनाया तो
मगर बारात का
जिस के आगे नाचते रहते हैं लोग
नोट दाँतों में दबाए
क्या नज़र में हैं तिरी वो ज़ुल्म
जो मुझ पर हुए हैं इस करम की आड़ में
रेस के मैदान के बदले
किसी मंडप तलक का ये सफ़र
कितना थका देता है मुझ को
क्या तुझे मा'लूम है
क्या तुझे मा'लूम है दूल्हे का बोझ
उस को बैठाने की ज़िम्मेदारियाँ
और उस पर इस क़दर हस्सास दिल
जो समझ सकता है इस दिन के म'आनी क्या हैं दूल्हे के लिए
कोई कैसा भी पटाख़ा छोड़ दे पैरों में मेरे
शोर से बाजे के मेरे कान भी फट जाएँ तो क्या
चाल में अपनी ज़रा सा फ़र्क़ मैं आने न दूँगा
पीठ पर बैठे हुए दूल्हे की 'इज़्ज़त मेरी 'इज़्ज़त
हाँ मगर ये भी ख़याल आता है अक्सर
मैं तो हर ज़िल्लत उठा कर
अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूरी करूँगा और करता आ रहा हूँ
तू मगर कब इस तरह सोचेगा उस मख़्लूक़ के बारे में
जो तेरी अमाँ में है
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