बाइपोलर

By abid-razaJanuary 14, 2025
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शहर-ए-जाँ
आज वीरान है
जैसे गहरी सियह रात हो


दर्द की तेज़ आँधी में सारे दिए बुझ गए
हर तरफ़ तीरगी
एक जुगनू भी बाक़ी नहीं
बस अँधेरों की दीवार है


यास के दश्त में
ना-रसाई की यलग़ार है
हसरत-ओ-ग़म की ज़ंजीर हिलती है झंकार है
कोई मूनिस नहीं


ज़िंदगी बार है
2
सुब्ह-दम
यक-ब-यक


जैसे जादू नगर
सारा मंज़र बदलने लगा
एक शीशे का पिंजरा कि मेरी अना-गीर नज़रों के मंतर की हिद्दत से
जैसे पिघलने लगा


फिर छनाके से टूटा मिरे सामने
अब तो एहसास की सब फ़सीलों से बाहर
मिरा अस्प-ए-ताज़ी वफ़ादार है
और मुरादों का इक दिलरुबा क़र्तबा सामने मेरे तय्यार है


आज मैं ही सिकंदर हूँ और
आज मेरे ही दस्त-ए-जुनूँ में चमकती हुई एक तलवार है
54670 viewsnazmHindi