सखी री बीत गई बरसात सखी री बीत गई बरसात एक सपन थी राम कहानी रोग भगाने आई जवानी हाए हम ने की मन-मानी जीवन पड़ गया मात सखी री बीत गई बरसात कहाँ गईं वो प्रेम की घातें सीधी सी पर गहरी बातें अपने दिन और अपनी रातें गुज़र गए न आए हात सखी री बीत गई बरसात सखी री बीत गई बरसात झरनों में कूजें हैं नहाएँ बगुले बैठे पर खुजलाएँ किस से पीतम मन बहलाएँ भड़क उठे जज़्बात सखी री बीत गई बरसात घर सूना है पड़ गए जाले उजड़ी नगरी आन बसा ले लेती है बीमार सँभाले मौत ने बाँधी घात सखी री बीत गई बरसात कौन है प्रेम की बाज़ी जीता ख़त्म हुई है मन की गीता सुख आनंद का दिन है बीता छाई दुख की रात सखी री बीत गई बरसात सखी री बीत गई बरसात